‘साप्ताहिक उपग्रह’ समाचार पत्र के संस्थापक संपादक, प्रकाशक स्व. श्री आनन्दसिंह छाजेड़ का जन्म 6 मार्च 1916 को जावरा में हुआ था। समर्पित, स्पष्टवादी, निर्भीक व्यक्ति 7 दिसम्बर 1985 को इस दुनिया से विदा हो गए थे। उनके पिता वकील स्व. श्री चुन्नीलाल छाजेड़ थे। श्री छाजेड़ के परिवार में दो भाई और एक बहन थी। बड़े भाई स्व. श्री राजसिंह छाजेड़ रतलाम के ख्यातनाम फौजदारी मामलों के वकील थे और रतलाम प्रजामंडल के अध्यक्ष भी रहे। खुद आनन्दसिंह भी जावरा प्रजामंडल में पदाधिकारी रहे।
आनन्दसिंह प्रारंभ से ही सक्रिय राजनैतिक चरित्र वाले, स्पष्टवादी, खरा-खरा बोलने वाले बेबाक एवं निडर व्यक्तित्व के रूप में थी। 1952 में जावरा से स्वतन्त्र उम्मीदवार के रूप में विधानसभा का चुनाव लड़ा। जावरा क्षेत्र के गन्ना किसानों के हितों की रक्षा के लिए सरकार एवं जावरा शुगर मिल मालिक से संघर्ष किया। भूख हड़ताल भी की और तत्कालीन प्रदेश सरकार से गन्ना उत्पादकों के हित रक्षा के लिए कानून भी बनवाया।
आनंदसिंह ने पूर्व भी जावरा में तत्कालीन नईदुनिया के लिए पत्रकारिता की लेकिन एक समाचार नहीं छापने के कारण उन्होंने उससे दूरी बना ली। उन्होंने ‘उपग्रह’ का प्रकाशन शुरू किया। 1965 में छाजेड़ प्रिन्टरी की स्थापना हुई। ‘उपग्रह’ का प्रकाशन भी छाजेड़ प्रिन्टरी से प्रारंभ हुआ। ‘उपग्रह’ समाचार पत्र का रतलाम और जावरा में वे स्वयं घूम-घूमकर वितरण करते थे। 1965 में 26 जनवरी के अवसर पर उपग्रह का 125 पृष्ठीय रंगीन कवर वाला विशेषांक प्रकाशन छाजेड़ ने किया था, जो उस समय एक दुरूह, श्रम साध्य कार्य था।
उनकी पहचान खरा-खरा लिखने वाले निष्पक्ष, निर्भीक पत्रकार की बन गई। वे विश्वसनीय समाचार सूत्रों के धनी थे। ‘उपग्रह’ में छपे जावरा तोप कांड के समाचार के कारण एक डीवायएसपी स्तर के अधिकारी को सजा तक हुई। जावरा जीनिंग फैक्ट्री के गोदाम में लगी आग के समाचारों के कारण जीनिंग फैक्ट्री वालों को बीमा राशि नहीं मिल पाई। इसका श्रेय ‘उपग्रह’ में छपे तथ्यपूर्ण समाचारों को जाता है। बेबाक एवं निर्भीक लेखनी के कारण उन्हें मीसाकाल में आठ माह कृष्णागार में मीसाबंदी के रूप में बिताने पड़े।
अपने समाचारों से उन्होंने जावरा में तत्कालीन नगर पालिका अध्यक्ष कुन्दनमल भारतीय को नपा से छह वर्षों के लिए डीबार (रोक) कराने में सफलता पाई थी। 1962 के चुनाव में जावरा से डॉ. कैलासनाथ काटजू की पराजय के मुख्य सूत्रधार वे ही थे। उन्होंने अपने राजनैतिक विरोधियों के लिए कभी भी अपनी कलम कमजोर नहीं होने दी। यही कारण है कि उन पर प्राण घातक हमला तक हुआ। उन पर स्टेशन रोड रतलाम में ट्रैफिक चौकी के बरामदे में रात को सोते समय अज्ञात लोगों ने लाठी से हमला किया था। सत्तर-अस्सी के दशक के बीच रतलाम के तत्कालीन पत्रकारों ने आनंदसिंह को जिला पत्रकार संघ का अध्यक्ष चुना। वे पत्रकारों के बीच ‘‘डैडी’’ के संबोधन से पुकारे व पहचाने जाते थे।
दिसम्बर 1985 में उनके स्वर्गवास के बाद उनके दो वरिष्ठ मित्रों तत्कालीन मध्यभारत प्रांत के स्वास्थ्य मंत्री रहे स्व. डॉ. प्रेमसिंह राठौर और श्री छाजेड़ के राजनैतिक गुरु, स्वतन्त्रता संग्रम सेनानी, वरिष्ठ पत्रकार श्री स्व. दलीचंदजी जैन के आग्रह पर श्री छाजेड़ के पुत्रों ने 1986 से ‘उपग्रह’ को निरन्तर प्रकाशित करते हुए उनकी अजर-अमर स्मृति को जिन्दा बनाए रखा है।
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