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जनता की आवाज उचित मंच तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम थे श्री कैलाशचन्द्र बरमेचा

लोकसेवा एवं परमार्थ के लिए समर्पित जीवन जीने वाले श्री (स्व.) कैलाशचन्द्र बरमेचा रतलाम ही नहीं वरन् लोकतंत्र के चौथे स्तंभ ‘पत्रकारिता’ के क्षेत्र में भी एक सशक्त हस्ताक्षर रहे हैं| जन समस्याओं एवं शासन-प्रशासन की अनियमितताओं के विरोध में आवाज़ बुलंद करना उनका शगल और ध्येय रहा। युवावस्था से ही सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहे स्व. बरमेचा जनता की पीड़ा को नजदीक से समझा एवं कलम की ताकत का महत्व समझते हुए उन्होंने इसके लिए पत्रकारिता को सर्वोत्तम माध्यम के रूप चुना।

जब रतलाम एवं अंचल में गिनती के समाचार-पत्र प्रकाशित होते थे, तब श्री कैलाशचन्द्र बरमेचा ने 1000 से अधिक प्रतियों के साथ 1972 में साप्ताहिक ‘रत्नपुरी’ का प्रकाशन और संपादन शुरू किया। प्रति गुरुवार प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक ‘रत्नपुरी’ न सिर्फ जनता की कठिनाइयों व समस्याओं को शासन-प्रशासन तक पहुंचाने का सेतु बना बल्कि जान जागरूकता का माध्यम भी बना। कलम की पैनी धार, मुखर व्यक्तित्व एवं सामाजिक कार्यों के अनुभवों के आधार पर जनहित के बिन्दुओं को प्रकाशित करने में श्री बरमेचा का साथ ‘श्री (स्व.) पूनमचंद जैन’ एवं ‘श्री स्व. रामकिशन परमार’ ने दिया।

लोकतंत्र पर काले दाग के रूप में याद रखे जाने वाले ‘आपातकाल’ में वे 19 माह रतलाम एवं इंदौर की जेलों में रहे। इसके लिए स्व. बरमेचा को बाद में ‘मीसाबंदी सम्मान’ प्रदान किया गया। ‘अनीति का विरोध’ व ‘जनहित के मुद्दों से समझौता’ करना उनके शब्दकोष में था ही नहीं। ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ (RSS) से प्रभावित थे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अलावा ‘भारतीय किसान संघ’, ‘सेवा भारती’, ‘विद्या भारती’ से जुड़े रहे।

‘कनेरी बांध’ की मांग के लिए क्षेत्र की जनता को उन्होंने ही एकजुट किया था। आज जब जिले का दूसरा सबसे बड़ा यह जलाशय लबालब हो छलक रहा है तब ‘नींव के पत्थर’ के रूप में दिए योगदान के लिए स्व. बरमेचा का स्मरण हमेशा किया जाता रहेगा। उनके मन में ग्रामीणों की समस्याओं के लिए असीम पीड़ा थी और यही वजह है कि उन्होंने ग्रामोत्थान के लिए समर्पित भाव से सतत प्रयास किए। 29 फरवरी 2008 को अपनी देह त्याग करने के पूर्व तक वे जनता की आवाज़ उचित मंच तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम बन कर पारमार्थिक जीवन जीते रहे।

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